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डनलप जो कि अंग्रेजी फौज का नेतृत्व कर रहा था, को शाहमल की फौजों के सामने से भागना पड़ा. इसने अपनी डायरी में लिखा है - |
डनलप जो कि अंग्रेजी फौज का नेतृत्व कर रहा था, को शाहमल की फौजों के सामने से भागना पड़ा. इसने अपनी डायरी में लिखा है - |
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''' "चारों तरफ से उभरते हुये जाट नगाड़े बजाते हुये चले जा रहे थे और उस आंधी के सामने अंग्रेजी फौजों का जिसे 'खाकी रिसाला' कहा जाता था, का टिकना नामुमकिन था."''' |
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एक सैन्य अधिकारी ने उनके बारे में लिखा है कि |
एक सैन्य अधिकारी ने उनके बारे में लिखा है कि |
Revision as of 08:56, 16 March 2010
The examples and perspective in this article may not represent a worldwide view of the subject. (March 2010) |
BIJROL A village in district Baghpat of Uttarpradesh (India). A village known for its bravery & heroism, giving birth to several freedom fighters. Having a population of more than eleven thousand this village is exactly 6 km from the center of Baraut the sub district of Baghpat.the geographical location of this place is 29°7'28"N 77°18'53"E. A beautiful place to visit having one of the Ashoka Pillar. A village that give birth to heroes like Baba Shahmal Tomar. Baba Shah Mal was a great freedom fighter who fought against Britishers. His role in the freedom movement of 1857 is nonparallel. The farmers of the area had suffered from over-taxation by the British in the months before the uprising of first freedom movement in 1857. Shah Mal put together a combined force of Tat and Gujjar farmers. His army attacked and plundered the tahsil of Barout and the bazaar at Baghpat. [1] Within a short period he took hold of 84 villages of Tomar Desh Khap. During the revolution of 1857, he made his headquarters at bungalow of Irrigation Department on Yanuna River and controlled his operations from there. The British army could not face the army of Shahmal. Graves of British Soldiers and Officers killed on 30th and 31st may, 1857 can be seen today at the Meerut Road Crossing near Hindon River.The British officer Dunlap could escape very marginally in a war with army of Shahmal in July 1857. Unfortunately the turban of Shahmal got entangled with legs of his horse. En English officer named Parkar who new Shahmal took advantage of this situation. He not only killed Shahmal but also cut his body to pieces and chopped his head off. The British army hanged the head of Shahmal on a jawline to terrify the public on 21 July 1857.
== A Journey Of Lifetime (Baba Shahmal Tomar) ==
बाबा शाहमल का जीवन परिचय
बाबा शाहमल जाट (तोमर) बागपत जिले में बिजरौल गांव के एक साधारण परन्तु आजादी के दिवाने क्रांतिकारी किसान थे । वे मेरठ और दिल्ली समेत आसपास के इलाके में बेहद लोकप्रिय थे। मेरठ जिले के समस्त पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भाग में अंग्रेजों के लिए भारी खतरा उत्पन्न करने वाले बाबा शाहमल ऐसे ही क्रांतिदूत थे। गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए इस महान व्यक्ति ने लम्बे अरसे तक अंग्रेजों को चैन से नहीं सोने दिया था।
अंग्रेज हकुमत से पहले यहाँ बेगम समरू राज्य करती थी. बेगम के राजस्व मंत्री ने यहाँ के किसानों के साथ बड़ा अन्याय किया. यह क्षेत्र १८३६ में अंग्रेजों के अधीन आ गया. अंग्रेज अदिकारी प्लाउड ने जमीन का बंदोबस्त करते समय किसानों के साथ हुए अत्याचार को कुछ सुधारा परन्तु मालगुजारी देना बढा दिया. पैदावार अच्छी थी. जाट किसान मेहनती थे सो बढ़ी हुई मालगुजारी भी देकर खेती करते रहे. खेती के बंदोबस्त और बढ़ी मालगुजारी से किसानों में भारी असंतोष था जिसने १८५७ की क्रांति के समय आग में घी का काम किया.
शाहमल का गाँव बिजरौल काफी बड़ा गाँव था . १८५७ की क्रान्ति के समय इस गाँव में दो पट्टियाँ थी. उस समय शाहमल एक पट्टी का नेतृत्व करते थे. बिजरौल में उसके भागीदार थे चौधरी शीश राम और अन्य जिन्होंने शाहमल की क्रान्तिकरी कार्रवाइयों का साथ नहीं दिया. दूसरी पट्टी में ४ थोक थी. इन्होने भी साथ नहीं दिया था इसलिए उनकी जमीन जब्त होने से बच गई थी.
शाहमल की क्रान्ति प्रारंभ में स्थानीय स्तर की थी परन्तु समय पाकर विस्तार पकड़ती गई. आस-पास के लम्बरदार विशेष तौर पर बडौत के लम्बरदार शौन सिंह और बुध सिंह और जौहरी, जफर्वाद और जोट के लम्बरदार बदन और गुलाम भी विद्रोही सेना में अपनी-अपनी जगह पर आ जामे. शाहमल के मुख्य सिपहसलार बगुता और सज्जा थे और जाटों के दो बड़े गाँव बाबली और बडौत अपनी जनसँख्या और रसद की तादाद के सहारे शाहमल के केंद्र बन गए.
१० मई को मेरठ से शुरू विद्रोह की लपटें इलाके में फ़ैल गई. शाहमल ने जहानपुर के गूजरों को साथ लेकर बडौत तहसील पर चढाई करदी. उन्होंने तहसील के खजाने को लूट कर उसकी अमानत को बरबाद कर दिया. बंजारा सौदागरों की लूट से खेती की उपज की कमी को पूरा कर लिया. मई और जून में आस पास के गांवों में उनकी धाक जम गई. फिर मेरठ से छूटे हुये कैदियों ने उनकी की फौज को और बढा दिया. उनके प्रभुत्व और नेतृत्व को देख कर दिल्ली दरबार में उसे सूबेदारी दी.
12 व 13 मई 1857 को बाबा शाहमल ने सर्वप्रथम साथियों समेत बंजारा व्यापारियों पर आक्रमण कर काफी संपत्ति कब्जे में ले ली और बड़ौत तहसील और पुलिस चौकी पर हमला बोल की तोड़फोड़ व लूटपाट की। दिल्ली के क्रांतिकारियों को उन्होंने बड़ी मदद की। क्रांति के प्रति अगाध प्रेम और समर्पण की भावना ने जल्दी ही उनको क्रांतिवीरों का सूबेदार बना दिया। शाहमल ने बिलोचपुरा के एक बलूची नवीबख्श के पुत्र अल्लादिया को अपना दूत बनाकर दिल्ली भेजा ताकि अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए मदद व सैनिक मिल सकें। बागपत के थानेदार वजीर खां ने भी इसी उद्देश्य से सम्राट बहादुरशाह को अर्जी भेजी। बागपत के नूर खां के पुत्र मेहताब खां से भी उनका सम्पर्क था। इन सभी ने शाहमल को बादशाह के सामने पेश करते हुए कहा कि वह क्रांतिकारियो के लिए बहुत सहायक हो सकते है और ऐसा ही हुआ शाहमल ने न केवल अंग्रेजों के संचार साधनों को ठप किया बल्कि अपने इलाके को दिल्ली के क्रांतिवीरों के लिए आपूर्ति क्षेत्र में बदल दिया।
अपनी बढ़ती फौज की ताकत से उन्होंने बागपत के नजदीक जमुना पर बने पुल को नष्ट कर दिया. उनकी इन सफलताओं से उन्हें ८४ गांवों का आधिपत्य मिल गया. उसे आज तक देश खाप की चौरासी कह कर पुकारा जाता है. वह एक स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में संगठित कर लिया गया और इस प्रकार वह जमुना के बाएं किनारे का राजा बन बैठा, जिससे कि दिल्ली की उभरती फौजों को रसद जाना कतई बंद हो गया और मेरठ के क्रांतिकारियों को मदद पहुंचती रही. इस प्रकार वह एक छोटे किसान से बड़े क्षेत्र के अधिपति बन गए.
कुछ अंग्रेजों जिनमें हैवेट, फारेस्ट ग्राम्हीर, वॉटसन कोर्रेट, गफ और थॉमस प्रमुख थे को यूरोपियन फ्रासू जो बेगम समरू का दरबारी कवि भी था, ने अपने गांव हरचंदपुर में शरण दे दी। इसका पता चलते ही शाहमल ने निरपत सिंह व लाजराम जाट के साथ फ्रासू के हाथ पैर बांधकर काफी पिटाई की और बतौर सजा उसके घर को लूट लिया। बनाली के महाजन ने काफी रुपया देकर उसकी जान बचायी। मेरठ से दिल्ली जाते हुए डनलप, विलियम्स और ट्रम्बल ने भी फ्रासू की रक्षा की। फ्रासू को उसके पड़ौस के गांव सुन्हैड़ा के लोगों ने बताया कि इस्माइल, रामभाई और जासूदी के नेतृत्व में अनेक गांव अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े हो गए है। शाहमल के प्रयत्नों से हिंदू व मुसलमान एक साथ मिलकर लड़े और हरचंदपुर, ननवा काजिम, नानूहन, सरखलान, बिजरौल, जौहड़ी, बिजवाड़ा, पूठ, धनौरा, बुढ़ैरा, पोईस, गुराना, नंगला, गुलाब बड़ौली, बलि बनाली (निम्बाली), बागू, सन्तोखपुर, हिलवाड़ी, बड़ौत, औसख, नादिर असलत और असलत खर्मास गांव के लोगों ने उनके नेतृत्व में संगठित होकर क्रांति का बिगुल बजाया।
कुछ बेदखल हुये जाट जमींदारों ने जब शाहमल का साथ छोड़कर अंग्रेज अफसर डनलप की फौज का साथ दिया तो शाहमल ने ३०० सिपाही लेकर बसौड़ गाँव पर कब्जा कर लिया. जब अंग्रेजी फौज ने गाँव का घेरा डाला तो शाहमल उससे पहले गाँव छोड़ चुका था. अंग्रेज फौज ने बचे सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया और ८००० मन गेहूं जब्त कर लिया. इलाके में शाहमल के दबदबे का इस बात से पता लगता है कि अंग्रेजों को इस अनाज को मोल लेने के लिए किसान नहीं मिले और न ही किसी व्यापारी ने बोली बोली. गांव वालों को सेना ने बाहर निकाल दिया पर दिल्ली से आये दो गाजी एक मस्जिद में मोर्चा लेकर लड़ते रहे और सेना नाकामयाब रही। शाहमल ने यमुना नहर पर सिंचाई विभाग के बंगले को मुख्यालय बना लिया था और अपनी गुप्तचर सेना कायम कर ली थी। हमले की पूर्व सूचना मिलने पर एक बार उन्होंने 129 अंग्रेजी सैनिकों की हालत खराब कर दी थी।
इलियट ने १८३० में लिखा है कि पगड़ी बांधने की प्रथा व्यक्तिको आदर देने की प्रथा ही नहीं थी, बल्कि उन्हें नेतृत्व प्रदान करने की संज्ञा भी थी. शाहमल ने इस प्रथा का पूरा उपयोग किया. शाहमल बसौड़ गाँव से भाग कर निकलने के बाद वह गांवों में गया और करीब ५० गावों की नई फौज बनाकर मैदान में उतर पड़ा.
दिल्ली दरबार और शाहमल की आपस में उल्लेखित संधि थी. अंग्रेजों ने समझ लिया कि दिल्ली की मुग़ल सता को बर्बाद करना है तो शाहमल की शक्ति को दुरुस्त करना आवश्यक है. उन्होंने शाहमल को जिन्दा या मुर्दा उसका सर काटकर लाने वाले के लिए १०००० रुपये इनाम घोषित किया.
डनलप जो कि अंग्रेजी फौज का नेतृत्व कर रहा था, को शाहमल की फौजों के सामने से भागना पड़ा. इसने अपनी डायरी में लिखा है -
"चारों तरफ से उभरते हुये जाट नगाड़े बजाते हुये चले जा रहे थे और उस आंधी के सामने अंग्रेजी फौजों का जिसे 'खाकी रिसाला' कहा जाता था, का टिकना नामुमकिन था."
एक सैन्य अधिकारी ने उनके बारे में लिखा है कि
एक जाट (शाहमल) ने जो बड़ौत परगने का गवर्नर हो गया था और जिसने राजा की पदवी धारण कर ली थी, उसने तीन-चार अन्य परगनों पर नियंत्रण कर लिया था।
दिल्ली के घेरे के समय जनता और दिल्ली इसी व्यक्ति के कारण जीवित रह सकी।
छपरा गांव के त्यागियों, बसोद के जादूगर और बिचपुरी के गूर्जरों ने भी शाहमल के नेतृत्व में क्रांति में पूरी शिरकत की। अम्हेड़ा के गूर्जरों ने बड़ौत व बागपत की लूट व एक महत्वपूर्ण पुल को नष्ट करने में हिस्सा लिया। सिसरौली के जाटों ने शाहमल के सहयोगी सूरजमल की मदद की जबकि दाढ़ी वाले सिख ने क्रांतिकारी किसानों का नेतृत्व किया।
जुलाई 1857 में क्रांतिकारी नेता शाहमल को पकड़ने के लिए अंग्रेजी सेना संकल्पबद्ध हुई पर लगभग 7 हजार सैनिकों सशस्त्र किसानों व जमींदारों ने डटकर मुकाबला किया। शाहमल के भतीजे भगत के हमले से बाल-बाल बचकर सेना का नेतृत्व कर रहा डनलप भाग खड़ा हुआ और भगत ने उसे बड़ौत तक खदेड़ा। इस समय शाहमल के साथ 2000 शक्तिशाली किसान मौजूद थे। गुरिल्ला युद्ध प्रणाली में विशेष महारत हासिल करने वाले शाहमल और उनके अनुयायियों का बड़ौत के दक्षिण के एक बाग में खाकी रिसाला से आमने सामने घमासान युद्ध हुआ.
डनलप शाहमल के भतीजे भगता के हाथों से बाल-बाल बचकर भागा. परन्तु शाहमल जो अपने घोडे पर एक अंग रक्षक के साथ लड़ रहा था, फिरंगियों के बीच घिर गया. उसने अपनी तलवार के वो करतब दिखाए कि फिरंगी दंग रह गए. तलवार के गिर जाने पर शाहमल अपने भाले से दुश्मनों पर वार करता रहा. इस दौर में उसकी पगड़ी खुल गई और घोडे के पैरों में फंस गई. जिसका फायदा उठाकर एक फिरंगी सवार ने उसे घोड़े से गिरा दिया. अंग्रेज अफसर पारकर, जो शाहमल को पहचानता था, ने शाहमल के शरीर के टुकडे-टुकडे करवा दिए और उसका सर काट कर एक भाले के ऊपर टंगवा दिया.
फिरंगियों के लिए यह सबसे बड़ी विजय पताका थी. डनलप ने अपने कागजात पर लिखा है कि अंग्रेजों के खाखी रिशाले के एक भाले पर अंग्रेजी झंडा था और दूसरे भाले पर शाहमल का सर टांगकर पूरे इलाके में परेड करवाई गई. चौरासी गांवों के 'देश' की किसान सेना ने फिर भी हार नहीं मानी. और शाहमल के सर को वापिस लेने के लिए सूरज मल और भगता स्थान-स्थान पर फिरंगियों पर हमला करते रहे. इसमें राजपूतों और गुजरों ने भी बढ़-चढ़ कर साथ दिया. शाहमल के गाँव सालों तक युद्ध चलाते रहे.
21 जुलाई 1857 को तार द्वारा अंग्रेज उच्चाधिकारियों को सूचना दी गई कि मेरठ से आयी फौजों के विरुद्ध लड़ते हुए शाहमल अपने 6000 साथियों सहित मारा गया। शाहमल का सिर काट लिया गया और सार्वजनिक रूप से इसकी प्रदर्शनी लगाई गई। पर इस शहादत ने क्रांति को और मजबूत किया तथा 23 अगस्त 1857 को शाहमल के पौत्र लिज्जामल जाट ने बड़ौत क्षेत्र में पुन: जंग की शुरुआत कर दी। अंग्रेजों ने इसे कुचलने के लिए खाकी रिसाला भेजा जिसने पांचली बुजुर्ग, नंगला और फुपरा में कार्रवाई कर क्रांतिकारियों का दमन कर दिया। लिज्जामल को बंदी बना कर साथियों जिनकी संख्या 32 बताई जाती है, को फांसी दे दी गई।
शाहमल मैदान में काम आया, परन्तु उसकी जगाई क्रांति के बीज बडौत के आस पास प्रस्फुटित होते रहे. बिजरौल गाँव में शाहमल का एक छोटा सा स्मारक बना है जो गाँव को उसकी याद दिलाता रहता है.