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==Further reading==
==Further reading==
*Rupert Snell, ''The Hindi Classical Tradition: A Braj Bhasa Reader.'' Includes grammar, readings and translations, and a good glossary.
*Rupert Snell, ''The Hindi Classical Tradition: A Braj Bhasa Reader.'' Includes grammar, readings and translations, and a good glossary.
सावन व भादों मास में ब्रज की छटा अद्भुत व अनोखी होती है। हर ओर अत्यंत हर्षोल्लास रहता है। यहां के विभिन्न मंदिरों में झूलों, हिडोंलो, रास लीलाओं, मल्हार गायन व सत्संग-प्रवचन आदि की धूम रहती है। कृष्ण जन्माष्टमी व राधाष्टमी के त्योहार यहां के स्वरूप को और व्यापक बना देते हैं। यहां इस वर्ष सावन-भादों मेला 4 जुलाई से 30 सितंबर तक चलेगा। इस वर्ष यहां कई गुना अधिक भक्त-श्रद्धालु व पर्यटक आ रहे हैं। कृष्ण जन्मभूमि मथुरा मथुरा का प्राचीन इतिहास है। मान्यता यह है कि त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज शत्रुघ्न ने लवणासुर नामक राक्षस का वध कर इसकी स्थापना की थी। द्वापर युग में यहां कृष्ण के जन्म लेने के कारण इस नगर की महिमा और अधिक बढ़ गई है। यहां के मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव स्थित राजा कंस के कारागार में लगभग पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात्रि के ठीक 12 बजे कृष्ण ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। यह स्थान उनके जन्म लेने कारण अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां प्रथम मंदिर का निर्माण कृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाम ने ईसा पूर्व 80 में कराया था। कालक्रम में इस मंदिर के ध्वस्त होने के बाद गुप्तकाल के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने सन् 400 ई. में दूसरे वृहद् मंदिर का निर्माण करवाया। परंतु इस मंदिर को महमूद गजनवी ने सन् 1070 ई. में ध्वस्त कर दिया। तत्पश्चात महाराज विजयपाल देव के शासन काल (सन् 1150) में जण्ण नामक व्यक्ति ने तीसरे मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर भी 16वीं सदी में सिकंदर लोधी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। सम्राट जहांगीर के शासनकाल में ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने चौथी बार एक अन्य भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जो कि 250 फुट ऊंचा था। इस मंदिर के स्वर्ण शिखर की चमक 56 किमी दूर स्थित आगरा तक देखी जा सकती थी। इस मंदिर को भी मुगल शासक औरंगजेब ने सन् 1669 में नष्ट कर दिया। जुगल किशोर बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की। उसके बाद यहां भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। भागवत भवन यहां का प्रमुख आकर्षण है। यहां पांच मंदिर हैं जिनमें राधा-कृष्ण का मंदिर मुख्य है। मथुरा का अन्य आकर्षण असिकुंडा बाजार स्थित ठाकुर द्वारिकाधीश महाराज का मंदिर है। यहां वल्लभ कुल की पूजा-पद्धति से ठाकुरजी की अष्टयाम सेवा-पूजा होती है। देश के सबसे बड़े व अत्यंत मूल्यवान हिंडोले द्वारिकाधीश मंदिर के ही है जोकि सोने व चांदी के है। यहां श्रावण माह में सजने वाली लाल गुलाबी, काली व लहरिया आदि घटाएं विश्व प्रसिद्ध हैं। मथुरा में यमुना के प्राचीन घाटों की संख्या 25 है। उन्हीं सब के बीचों-बीच स्थित है- विश्राम घाट। यहां प्रात: व सांय यमुनाजी की आरती उतारी जाती है। यहां पर यमुना महारानी व उनके भाई यमराज का मंदिर भी मौजूद है। विश्राम के घाट के सामने ही यमुना पार महर्षि दुर्वासा का आश्रम है। इसके अलावा मथुरा में भूतेश्वर महादेव, धु्रव टीला, कंस किला, अम्बरीथ टीला, कंस वध स्थल, पिप्लेश्वर महादेव, बटुक भैरव, कंस का अखाड़ा, पोतरा कुंड, गोकर्ण महादेव, बल्लभद्र कुंड, महाविद्या देवी मंदिर आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल है। मंदिरों का शहर वृंदावन कृष्ण की किशोरावस्था वृंदावन में बीती थी। यह मंदिरों का शहर है। यहां घर-घर में मंदिर है। तमाम मंदिर राज परिवारों द्वारा बनवाए गए हैं। इन सब मंदिरों की संख्या 5000 से भी अधिक है। ठाकुर बांके बिहारी मंदिर की वृंदावन में सर्वाधिक मान्यता है। इस मंदिर के दर्शन किए बगैर वृंदावन की यात्रा अधूरी मानी जाती है। इस मंदिर में स्थापित विग्रह को संत प्रवर स्वामी हरिदास महाराज ने संवत् 1567 की अगहन थुल्ल पंचमी को निधिवन में प्रकट किया था। पहले इस विग्रह को निधिवन में, फिर भरतपुर की महारानी द्वारा बनवाए गए मंदिर में पूजा गया। संवत् 1921 में बिहारी जी के गोस्वामियों ने बिहारीजी का नया मंदिर बनवाया, जहां पर वे इन दिनों विराजित हैं। वृंदावन के गोविंद देव मंदिर, गोपीनाथ मंदिर, मदन मोहन मंदिर, दामोदर मंदिर, राधा रमण देव मंदिर, श्याम सुंदर मंदिर व गोकुलानंद मंदिर नामक सप्त देवालयों की अत्यधिक मान्यता है। इन सभी मंदिरों की स्थापना चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर उनके षण गोस्वामियों ने रखी थी। इन सभी मंदिरों में स्वयं प्रकट ठाकुर विग्रह विराजित हैं। मान्यताओं में दामोदर मंदिर की चार परिक्रमा को गिरिराज गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा के समकक्ष माना गया है। इसके अलावा वृंदावन में उत्तर व दक्षिण के समन्वय का प्रतीक उत्तर भारत का सबसे विशाल व भव्य रंग लक्ष्मी मंदिर, जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह द्वारा बनवाया गया राधा माधव मंदिर (जयपुर वाला मंदिर) राधा वल्लभ मंदिर, कृष्ण चन्द्रमा लाला बाबू मंदिर, कात्यायनी पीठ मंदिर, इमलीतला मंदिर, तराश मंदिर, श्रृंगार वट मंदिर, मीराबाई मंदिर, कृष्ण बलराम मंदिर (अंग्रेजों वाला मंदिर) आदि प्रमुख हैं। यहां के वंशीवट स्थित गोपीश्वर महादेव मंदिर का संबंध कृष्ण द्वारा सोलह हजार एक सौ आठ गोपियों के साथ किए गए महारास से है। इस मंदिर में प्रात:काल उसी शिवलिंग को गोपी के रूप में सजा कर पूजा जाता है। श्रावण में यहां भक्त-श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। सफेद संगमरमर से बना वृंदावन का शाहजी मंदिर, टेढ़े खंभे वाला मंदिर) कला की दृष्टि से उत्तर भारत का सर्वश्रेष्ठ मंदिर है। इस मंदिर के बासंती कमरे में दस-दस फुट लंबे झाड़-फानूस, मुगल कालीन सौंदर्य सामग्री, कलात्मक वस्तुएं और भित्ति चित्र आदि मौजूद हैं। यह कमरा आम दर्शकों के लिए श्रावण की त्रयोदशी व चतुर्दशी को खुलता है। इनके अलावा यहां के मदन मोहन मंदिर, पुराना गोविंद देव मंदिर, युगल किशोर मंदिर और पुराना राधा वल्लभ मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं। कृपालु महाराज द्वारा बनवाया गया प्रेम मंदिर अद्भुत व विलक्षण है। यह वृंदावन के छटीकरा रोड पर 54 एकड़ क्षेत्रफल में स्थापित है। श्वेत इटालियन करारे मार्बल पत्थर से बना यह अभूतपूर्व व ऐतिहासिक मंदिर लगभग 11 वर्षो में बन कर तैयार हुआ है। इसके अलावा वृंदावन में राधा-कृष्ण का नित्य रास स्थल- सेवाकुंज, उद्धव गोपी संवाद स्थल- ज्ञान गुदडी, टटिया स्थान- जहां आज भी वृंदावन का प्राचीन स्वरूप कायम है, यमुना का केसी घाट आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। यमुना पार जहांगीरपुर ग्राम स्थित बेलवन में लक्ष्मी तपस्थली है। यहां लक्ष्मी का भव्य मंदिर है। पौष माह में यहां प्रत्येक गुरुवार को मेला जुड़ता है। गिरिराज-गोवर्धन मथुरा से 21 किमी दूर पश्चिम में मथुरा-बरसाना मार्ग पर स्थित है- गोवर्धन। यहीं पर गोवर्धन पर्वत मौजूद है। उत्तर से दक्षिण की ओर स्थित इस पर्वत की लंबाई 11 किमी और ऊंचाई 30 मीटर है। इस पर्वत की प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में लोग परिक्रमा करते हैं। गोवर्धन में गोवर्धन नाथ का मुखारविंद, मानसी गंगा, हरिदेव मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, दानघाटी मंदिर, गौरांग मंदिर, सनातन गोस्वामी की भजन कुटीर, ब्रšा कुंड, मनसा देवी मंदिर, चकलेश्वर आदि दर्शनीय स्थल हैं। गोवर्धन के निकट चंद्रसरोवर, महाकवि सूरदास की साधना व निर्वाण स्थली परासौली, आन्यौर, गोविंद कुंड, राधा कुंड, पूंछरी का लौण, जतीपुरा, उद्धव कुंड, कुसुम सरोवर, नारद कुंड, ग्वाल पोखरा आदि कई प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। गोकुल-महावन मथुरा से 16 किमी दूर यमुना पार स्थित गोकुल में कृष्ण की शैशवावस्था व्यतीत हुई थी। गोकुल व महावन पर्यायवाची शब्द हैं। ब्रज में कृष्ण जन्माष्टमी पर होने वाले नंदोत्सव का मुख्य आयोजन गोकुल स्थित गोकुलनाथ मंदिर में ही होता है। यहां सवेरे कन्हैया की झांकी शोभा-यात्रा के रूप में निकाली जाती है। साथ ही कृष्ण के पालने के भी दर्शन होते है। इसके अलावा हल्दी मिला दही दधिकांदा के रूप में भक्त- श्रद्धालुओं पर फेंका जाता है। गोकुल में नंद महल, नंदराय मंदिर, कोलेघाट, पूतना उद्धार स्थली, ठकुरानी घाट, रसखान समाधि, चौरासी खंभा, ब्रšांड घाट आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। गोकुल वल्लभ सम्प्रदाय का भी प्रमुख केंद्र है। सादाबाद मार्ग पर मथुरा से लगभग 12 किमी दूर कृष्ण की आच्चदिनी शक्ति राधारानी की जन्म-भूमि रावल है। मान्यताओं के अनुसार कालांतर में वह कंस के अत्याचारों से त्रस्त होकर अपने माता-पिता के साथ बरसाना आकर रहने लगीं। यहां राधारानी का प्राचीन मंदिर भी है। राधा का बरसाना राधा रानी की बाल लीला स्थली बरसाना ब्रजभूमि का हृदय है। यह दिल्ली-आगरा राजमार्ग पर स्थित कोसीकलां से 7 किमी और मथुरा से वाया गोवर्धन 47 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां राधा रानी का विशाल मंदिर है, जिसे लाडि़ली महल के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में विराजित राधा रानी की प्रतिमा को ब्रजाचार्य श्रील नारायण भट्ट ने बरसाना स्थित ब्रšामेश्वर गिरि नामक पर्वत में से संवत् 1626 की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकाला था। इस मंदिर में दर्शन के लिए 250 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। यहां राधाष्टमी के अवसर पर भाद्र पद शुक्ल एकादशी से चार दिवसीय मेला जुड़ता है। इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व ओरछा नरेश ने कराया था। इस मंदिर के निकट ही जयपुर वाला मंदिर है। बरसाना के चारों ओर अनेक प्राचीन व पौराणिक स्थल हैं। यहां स्थित जिन चार पहाड़ों पर राधा रानी का भानुगढ़, दान गढ़, विलासगढ़ व मानगढ़ हैं, वे ब्रšा के चार मुख माने गए हैं। इसी तरह यहां के चारों ओर सुनहरा की जो पहाडि़या हैं उनके आगे पर्वत शिखर राधा रानी की अष्टसखी रंग देवी, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चंपकलता, चित्रा, तुंग विद्या व इंदुलेखा के निवास स्थान हैं। यहां स्थित मोर कुटी, गहवखन व सांकरी खोर आदि भी अत्यंत प्रसिद्ध है। सांकरी खोर दो पहाडि़यों के बीच एक संकरा मार्ग है। कहा जाता है कि बरसाने की गोपियां जब इसमें से गुजर कर दूध-दही बेचने जाती थीं तो कृष्ण व उनके ग्वाला-बाल सखा छिपकर उनकी मटकी फोड़ देते थे और दूध-दही लूट लेते थे। नंदगांव बरसाना से 7 किमी दूर स्थित है- नंदगांव। यह ब्रज के चार प्रमुख धामों में से एक है। नंदगांव में नंदीश्वर पर्वत पर यहां का सबसे अधिक प्रसिद्ध नंदराय मंदिर है। इसे नंदालय अथवा नंद महल के नाम से भी जाना जाता है। इसमें कृष्ण, बलदेव, नंद व यशोदा की मूर्तियां हैं। वर्तमान मंदिर लगभग 150 वर्ष प्राचीन है। यहां सनातन गोस्वामी की भजन स्थली, कदंबखंडी, तड़ाग तीर्थ, नंदीश्वर महादेव, धोयनि कुंड, कदंब टेर, रूप गोस्वामी की भजन स्थली, ललिता कुंड, विशाखा कुंड, यशोदा कुंड, हाऊ-विलाऊ, मधुसूदन कुंड, कारहरो वन, वृंदादेवी, कदंब वन, मुक्ता कुंड, उद्धव क्यारी, मोहिनी वन, आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। बलराम की नगरी बलदेव कृष्ण जन्मभूमि मथुरा से 22 किमी दूर उनके अग्रज बलराम की नगरी बलदेव है। बलदेव, दाऊजी के नाम से भी प्रसिद्ध है। कृष्ण जब ब्रज छोड़ कर द्वारिका चले गए थे तब बलराम ही ब्रज के राजा माने गए थे। बलदेव में ठाकुर दाऊ दयाल का विशाल मंदिर है। इस मंदिर में बलराम का विशाल श्याम वर्ण विग्रह स्थापित है। इस मंदिर में बलराम की प्रतिमा के समक्ष उनकी पत्नी रेवती की भी प्रतिमा स्थापित है। 16वीं सदी में जब कुछ मुगल आक्रांताओं द्वारा विभिन्न मंदिरों को तोड़ा जा रहा था तब भी यह मंदिर सुरक्षित बना रहा। इस मंदिर में माखन-मिश्री का विशेष भोग लगाया जाता है। जिसे दाऊजी का हंडा कहा जाता है। ब्रज में 84 कोस की यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। ब्रज चौरासी कोस में 1300 से भी अधिक गांव, 1000 सरोवर, 48 वन, 24 कदंब खंडिया, अनेक पर्वत व यमुना घाट व कई अन्य महत्वपूर्ण स्थल है।


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Braj, though never a clearly defined political region in India, is very well demarcated culturally. It is considered to be the land of [[Krishna]] and is derived from the [[Sanskrit]] word ''vraja''. The main cities in the region are [[Mathura]], [[Bharatpur, India|Bharatpur]], [[Agra]], [[Dholpur]] and [[Aligarh]]. ==Area== Geographically and culturally Brajbhoomi is a part of the [[Ganges]]-[[Yamuna]] [[Doab]] region, which has had an extensive influence on the entirety of Indian culture. Brajbhoomi falls right in the middle of the [[Doab]]. The area was an important part of the Madhya-desha or Aryavarta or midlands. The region lies well within the golden triangle of [[Delhi]]-[[Jaipur]]-[[Agra]]. Covering an area of about 3,800&nbsp;km<sup>2</sup> today, Brajbhoomi can be divided into two distinct units - the eastern part in the trans-Yamuna tract with places like [[Gokul]], [[Mahavan]], [[Sadabad]], [[Baldeo]], [[Mat]] and Manigarhi(Nauhjheel)[[Bajna, India|Bajna]]; and the western side of the Yamuna covering the [[Mathura, Uttar Pradesh|Mathura]] region that encompasses [[Vrindavan]], [[Govardhan]], [[Kusum Sarovar]], [[Barsana]] and [[Nandgaon]]. Contrary to the popular belief that Braj is Mathura, Vrindavan and Goverdhan alone, this region comprises [[Mathura district]] of [[Uttar Pradesh]], [[Kaman Tehsil]] of [[Bharatpur district]] of [[Rajasthan]] and [[Hodel (India)|Hodel]] of [[Palwal district]] of [[Haryana]] and it spans across 1300 villages. The land of Braj starts from [[Kotban]] near Hodel about 95&nbsp;km from Delhi, [[Agra]], [[Aligarh]], [[Hathras]] and [[Dholpur]], in wider terms [[Firozabad]] [[Mainpuri]] [[Etah]] [[Etawah]] and [[Gwalior]] [[Morena]] also the part of [[Brajbhoomi]] ==Culture== The residents or natives of Braj are called ''Brijwasi''. [[Braj bhasha]] or ''Brij bhasha'', closely related to spoken [[Hindi]] with a soft accent is spoken throughout the region. Braj is famous for its sweets and [[Chaat]]. Pede from [[Mathura, Uttar Pradesh|Mathura]] and maal puye from Nauhjheel are famous throughout [[India]]. ==Region and the cult of Krishna== Region is closely related to the [[Hindu]] epic [[Mahabharata]]. [[Krishna]] is said to have spent his childhood and adolescence in Braj and therefore, it has an important status in [[Hinduism]]. Krishna performed his numerous pastimes popularly called [[lilas of Krishna|his leelas]] in the 137 sacred forests, at the 1000 [[Kund]]s, on the numerous holy hills and on the banks of the river [[Yamuna]]. In Srimad Bhagwat Geeta, he himself says to his foster father, Nandbaba that Braj is a culture of forests and hills and not of city. Through his Leelas, Krishna has emerged as the first environmentalist of the world. Nowhere in the history of mankind, can one find such an emphasis on the harmony of human life with the environment. By eating mud and showing the Universe in his mouth to mother Yashoda, he symbolically purified the earth element. By shunning the Kalia serpent, he emphasised the purification of the water element. By sucking the Forest fire in Braj, he purified the fire element and by killing Trinavrat and Vyomasur he symbolically purified the air and space elements respectively. Thus, the Brajbhasa, the language of Braj was the language of choice of the [[Bhakti]] movement, or the neo-Vaishnavite religions, the central deity of which was Krishna. Therefore, most of the literature in this language pertains to Krishna composed in medieval times. If Bhagwat Geeta can be summarized in one word as "Nishkaam Karmayoga", Braj can be summarized in one word as "Simplification of Divine". The Divine in the form of Krishna got so simplified over here that he stole milk, curd and butter from the Brajwasis homes, grazed cows as a shepherd and shared the same plate of food with his friends, played with them, danced with them and did all those activities that a common man does, forgetting all about his divinity. It is because of this simplification of the divine that the element of spiritualism is ingrained in the anatomy of the locales, that the pinnacle of bliss and satisfaction is found only here, that the hospitality of every Brajwasi can give the best hospitality professionals a run for their money. Many international Hindu communities and disciplic successions established temples in the heart of Braj, the holy city of [[Vrindavan]]. == Protection of the heritage == The vast heritage of the region is thought to be deteriorating. Out of the 1000 kunds which used to be the source of fresh and potable drinking water source and rain water harvesting, 90% of them have dried and silted up, encroached upon and reduced to sludge tanks. Out of the 137 forests, only 3 are left and the rest have been cut down. Out of the 27 picturesque ghats on the banks of river Yamuna, only one remains and rest have been encroached upon and smuggled out. Due to the wide scale illegal mining of Braj hills, the heritage spots associated with Krishna are being lost. There is an overall destruction of the most culturally vibrant and heritage region of Vaishnavas, Hindus, Indians and mankind on the whole. Efforts are being made by [http://www.brajfoundation.org The Braj Foundation], a voluntary organization towards the revival of the 5000 year old holy region of Braj. [http://www.brajfoundation.org The Braj Foundation], is dedicated to the all round development of Braj – the culturally vibrant region lying in close vicinity to Taj Mahal and associated with the legend of Sri Radha-Krishna. The Foundation works directly on projects to restore Braj as an idealistic rural society by conserving its 5000 year old heritage and environment through planning, conservation, renovation and encouraging local community participation. The current focus is on the restoration of 1000 ancient water retention tanks (kunds), revival of 48 important sacred groves, regeneration of around 18000 acres (73&nbsp;km²) of hilly terrains into lush-green pasture lands & forests and the resurrection of River Yamuna. Till now the foundation has restored 35 ancient water bodies and 1 sacred forest out of the 3 forests left in the entire region. A small group of dedicated professionals has achieved all this in a period of 5 years. The Foundation is making several interventions in areas like organic farming, dairy industry, rural education, health care etc. towards the realization of its broader mandate. Although some Indians still carry the name of Brijen which is one way how the story of Krishna coming down to the Earth will be preserved in oral tradition. ==Further reading== *Rupert Snell, ''The Hindi Classical Tradition: A Braj Bhasa Reader.'' Includes grammar, readings and translations, and a good glossary. ==External links== *[http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0 Brajdiscovery.org {{Languageicon|hi}}] *[http://www.brajwasi.in Brajwasi.in For Braj Dham] *[http://www.brajdhamseva.org The Braj Dham Seva (service)- The organisation that has really been inspiring and mobilizing to restore Braj] *[http://www.up-tourism.com/destination/braj/braj_bhoomi.htm http://www.up-tourism.com/destination/braj/braj_bhoomi.htm] *[http://www.tourism-of-india.com/brajbhoomi.html http://www.tourism-of-india.com/brajbhoomi.html] *[http://www.radhavallabh.com/BrajChaurasiKosYatra.htm Braj Chaurasi Kos Yatra explained in Detail] *[http://www.brajfoundation.org The Braj Foundation] {{coord missing|Uttar Pradesh}} {{Historical regions of North India}} [[Category:Tourism in Uttar Pradesh]] [[Category:Krishna]] [[Category:Mahabharata]] [[Category:Regions of India]] [[Category:Regions of Uttar Pradesh]] [[ru:Брадж]]'
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'{| class="toccolours" border="1" cellpadding="2" cellspacing="2" style="float: right; margin: 0 0 1em 1em; width: 250px; border-collapse: collapse; font-size: 95%;" |- | colspan="2" style="margin-left: inherit; background:#FFC0CB; text-align:center; font-size: medium;" |Historical region of North India<br />'''Braj''' |- align="center" | colspan="2" | <div style="position:relative; margin: 0 0 0 0; border-collapse: collapse; border="1" cellpadding="0"> [[File:Kusuma Sarovar Ghat.jpg|250px|Kusuma Sarovar]]</div> |- style="vertical-align: top;" | '''Location''' | [[Uttar Pradesh]] |- style="vertical-align: top;" | '''[[Language]]''' | [[Braj Bhasa]] |- style="vertical-align: top;" | '''Historical [[Capital (political)|capitals]]''' | [[Mathura, Uttar Pradesh|Mathura]] |- style="vertical-align: top;" <!--| colspan=2 | <small>{{{footnotes}}}</small> --> |} '''Braj''' ([[Hindi]]/[[Braj Bhasha]]: ब्रज) (also known as '''Brij''' or '''Brajbhoomi''') is a region mainly in [[Uttar Pradesh]] of [[India]], around [[Mathura, Uttar Pradesh|Mathura]]-[[Vrindavan]]. Braj, though never a clearly defined political region in India, is very well demarcated culturally. It is considered to be the land of [[Krishna]] and is derived from the [[Sanskrit]] word ''vraja''. The main cities in the region are [[Mathura]], [[Bharatpur, India|Bharatpur]], [[Agra]], [[Dholpur]] and [[Aligarh]]. ==Area== Geographically and culturally Brajbhoomi is a part of the [[Ganges]]-[[Yamuna]] [[Doab]] region, which has had an extensive influence on the entirety of Indian culture. Brajbhoomi falls right in the middle of the [[Doab]]. The area was an important part of the Madhya-desha or Aryavarta or midlands. The region lies well within the golden triangle of [[Delhi]]-[[Jaipur]]-[[Agra]]. Covering an area of about 3,800&nbsp;km<sup>2</sup> today, Brajbhoomi can be divided into two distinct units - the eastern part in the trans-Yamuna tract with places like [[Gokul]], [[Mahavan]], [[Sadabad]], [[Baldeo]], [[Mat]] and Manigarhi(Nauhjheel)[[Bajna, India|Bajna]]; and the western side of the Yamuna covering the [[Mathura, Uttar Pradesh|Mathura]] region that encompasses [[Vrindavan]], [[Govardhan]], [[Kusum Sarovar]], [[Barsana]] and [[Nandgaon]]. Contrary to the popular belief that Braj is Mathura, Vrindavan and Goverdhan alone, this region comprises [[Mathura district]] of [[Uttar Pradesh]], [[Kaman Tehsil]] of [[Bharatpur district]] of [[Rajasthan]] and [[Hodel (India)|Hodel]] of [[Palwal district]] of [[Haryana]] and it spans across 1300 villages. The land of Braj starts from [[Kotban]] near Hodel about 95&nbsp;km from Delhi, [[Agra]], [[Aligarh]], [[Hathras]] and [[Dholpur]], in wider terms [[Firozabad]] [[Mainpuri]] [[Etah]] [[Etawah]] and [[Gwalior]] [[Morena]] also the part of [[Brajbhoomi]] ==Culture== The residents or natives of Braj are called ''Brijwasi''. [[Braj bhasha]] or ''Brij bhasha'', closely related to spoken [[Hindi]] with a soft accent is spoken throughout the region. Braj is famous for its sweets and [[Chaat]]. Pede from [[Mathura, Uttar Pradesh|Mathura]] and maal puye from Nauhjheel are famous throughout [[India]]. ==Region and the cult of Krishna== Region is closely related to the [[Hindu]] epic [[Mahabharata]]. [[Krishna]] is said to have spent his childhood and adolescence in Braj and therefore, it has an important status in [[Hinduism]]. Krishna performed his numerous pastimes popularly called [[lilas of Krishna|his leelas]] in the 137 sacred forests, at the 1000 [[Kund]]s, on the numerous holy hills and on the banks of the river [[Yamuna]]. In Srimad Bhagwat Geeta, he himself says to his foster father, Nandbaba that Braj is a culture of forests and hills and not of city. Through his Leelas, Krishna has emerged as the first environmentalist of the world. Nowhere in the history of mankind, can one find such an emphasis on the harmony of human life with the environment. By eating mud and showing the Universe in his mouth to mother Yashoda, he symbolically purified the earth element. By shunning the Kalia serpent, he emphasised the purification of the water element. By sucking the Forest fire in Braj, he purified the fire element and by killing Trinavrat and Vyomasur he symbolically purified the air and space elements respectively. Thus, the Brajbhasa, the language of Braj was the language of choice of the [[Bhakti]] movement, or the neo-Vaishnavite religions, the central deity of which was Krishna. Therefore, most of the literature in this language pertains to Krishna composed in medieval times. If Bhagwat Geeta can be summarized in one word as "Nishkaam Karmayoga", Braj can be summarized in one word as "Simplification of Divine". The Divine in the form of Krishna got so simplified over here that he stole milk, curd and butter from the Brajwasis homes, grazed cows as a shepherd and shared the same plate of food with his friends, played with them, danced with them and did all those activities that a common man does, forgetting all about his divinity. It is because of this simplification of the divine that the element of spiritualism is ingrained in the anatomy of the locales, that the pinnacle of bliss and satisfaction is found only here, that the hospitality of every Brajwasi can give the best hospitality professionals a run for their money. Many international Hindu communities and disciplic successions established temples in the heart of Braj, the holy city of [[Vrindavan]]. == Protection of the heritage == The vast heritage of the region is thought to be deteriorating. Out of the 1000 kunds which used to be the source of fresh and potable drinking water source and rain water harvesting, 90% of them have dried and silted up, encroached upon and reduced to sludge tanks. Out of the 137 forests, only 3 are left and the rest have been cut down. Out of the 27 picturesque ghats on the banks of river Yamuna, only one remains and rest have been encroached upon and smuggled out. Due to the wide scale illegal mining of Braj hills, the heritage spots associated with Krishna are being lost. There is an overall destruction of the most culturally vibrant and heritage region of Vaishnavas, Hindus, Indians and mankind on the whole. Efforts are being made by [http://www.brajfoundation.org The Braj Foundation], a voluntary organization towards the revival of the 5000 year old holy region of Braj. [http://www.brajfoundation.org The Braj Foundation], is dedicated to the all round development of Braj – the culturally vibrant region lying in close vicinity to Taj Mahal and associated with the legend of Sri Radha-Krishna. The Foundation works directly on projects to restore Braj as an idealistic rural society by conserving its 5000 year old heritage and environment through planning, conservation, renovation and encouraging local community participation. The current focus is on the restoration of 1000 ancient water retention tanks (kunds), revival of 48 important sacred groves, regeneration of around 18000 acres (73&nbsp;km²) of hilly terrains into lush-green pasture lands & forests and the resurrection of River Yamuna. Till now the foundation has restored 35 ancient water bodies and 1 sacred forest out of the 3 forests left in the entire region. A small group of dedicated professionals has achieved all this in a period of 5 years. The Foundation is making several interventions in areas like organic farming, dairy industry, rural education, health care etc. towards the realization of its broader mandate. Although some Indians still carry the name of Brijen which is one way how the story of Krishna coming down to the Earth will be preserved in oral tradition. ==Further reading== *Rupert Snell, ''The Hindi Classical Tradition: A Braj Bhasa Reader.'' Includes grammar, readings and translations, and a good glossary. सावन व भादों मास में ब्रज की छटा अद्भुत व अनोखी होती है। हर ओर अत्यंत हर्षोल्लास रहता है। यहां के विभिन्न मंदिरों में झूलों, हिडोंलो, रास लीलाओं, मल्हार गायन व सत्संग-प्रवचन आदि की धूम रहती है। कृष्ण जन्माष्टमी व राधाष्टमी के त्योहार यहां के स्वरूप को और व्यापक बना देते हैं। यहां इस वर्ष सावन-भादों मेला 4 जुलाई से 30 सितंबर तक चलेगा। इस वर्ष यहां कई गुना अधिक भक्त-श्रद्धालु व पर्यटक आ रहे हैं। कृष्ण जन्मभूमि मथुरा मथुरा का प्राचीन इतिहास है। मान्यता यह है कि त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज शत्रुघ्न ने लवणासुर नामक राक्षस का वध कर इसकी स्थापना की थी। द्वापर युग में यहां कृष्ण के जन्म लेने के कारण इस नगर की महिमा और अधिक बढ़ गई है। यहां के मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव स्थित राजा कंस के कारागार में लगभग पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात्रि के ठीक 12 बजे कृष्ण ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। यह स्थान उनके जन्म लेने कारण अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां प्रथम मंदिर का निर्माण कृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाम ने ईसा पूर्व 80 में कराया था। कालक्रम में इस मंदिर के ध्वस्त होने के बाद गुप्तकाल के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने सन् 400 ई. में दूसरे वृहद् मंदिर का निर्माण करवाया। परंतु इस मंदिर को महमूद गजनवी ने सन् 1070 ई. में ध्वस्त कर दिया। तत्पश्चात महाराज विजयपाल देव के शासन काल (सन् 1150) में जण्ण नामक व्यक्ति ने तीसरे मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर भी 16वीं सदी में सिकंदर लोधी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। सम्राट जहांगीर के शासनकाल में ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने चौथी बार एक अन्य भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जो कि 250 फुट ऊंचा था। इस मंदिर के स्वर्ण शिखर की चमक 56 किमी दूर स्थित आगरा तक देखी जा सकती थी। इस मंदिर को भी मुगल शासक औरंगजेब ने सन् 1669 में नष्ट कर दिया। जुगल किशोर बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की। उसके बाद यहां भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। भागवत भवन यहां का प्रमुख आकर्षण है। यहां पांच मंदिर हैं जिनमें राधा-कृष्ण का मंदिर मुख्य है। मथुरा का अन्य आकर्षण असिकुंडा बाजार स्थित ठाकुर द्वारिकाधीश महाराज का मंदिर है। यहां वल्लभ कुल की पूजा-पद्धति से ठाकुरजी की अष्टयाम सेवा-पूजा होती है। देश के सबसे बड़े व अत्यंत मूल्यवान हिंडोले द्वारिकाधीश मंदिर के ही है जोकि सोने व चांदी के है। यहां श्रावण माह में सजने वाली लाल गुलाबी, काली व लहरिया आदि घटाएं विश्व प्रसिद्ध हैं। मथुरा में यमुना के प्राचीन घाटों की संख्या 25 है। उन्हीं सब के बीचों-बीच स्थित है- विश्राम घाट। यहां प्रात: व सांय यमुनाजी की आरती उतारी जाती है। यहां पर यमुना महारानी व उनके भाई यमराज का मंदिर भी मौजूद है। विश्राम के घाट के सामने ही यमुना पार महर्षि दुर्वासा का आश्रम है। इसके अलावा मथुरा में भूतेश्वर महादेव, धु्रव टीला, कंस किला, अम्बरीथ टीला, कंस वध स्थल, पिप्लेश्वर महादेव, बटुक भैरव, कंस का अखाड़ा, पोतरा कुंड, गोकर्ण महादेव, बल्लभद्र कुंड, महाविद्या देवी मंदिर आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल है। मंदिरों का शहर वृंदावन कृष्ण की किशोरावस्था वृंदावन में बीती थी। यह मंदिरों का शहर है। यहां घर-घर में मंदिर है। तमाम मंदिर राज परिवारों द्वारा बनवाए गए हैं। इन सब मंदिरों की संख्या 5000 से भी अधिक है। ठाकुर बांके बिहारी मंदिर की वृंदावन में सर्वाधिक मान्यता है। इस मंदिर के दर्शन किए बगैर वृंदावन की यात्रा अधूरी मानी जाती है। इस मंदिर में स्थापित विग्रह को संत प्रवर स्वामी हरिदास महाराज ने संवत् 1567 की अगहन थुल्ल पंचमी को निधिवन में प्रकट किया था। पहले इस विग्रह को निधिवन में, फिर भरतपुर की महारानी द्वारा बनवाए गए मंदिर में पूजा गया। संवत् 1921 में बिहारी जी के गोस्वामियों ने बिहारीजी का नया मंदिर बनवाया, जहां पर वे इन दिनों विराजित हैं। वृंदावन के गोविंद देव मंदिर, गोपीनाथ मंदिर, मदन मोहन मंदिर, दामोदर मंदिर, राधा रमण देव मंदिर, श्याम सुंदर मंदिर व गोकुलानंद मंदिर नामक सप्त देवालयों की अत्यधिक मान्यता है। इन सभी मंदिरों की स्थापना चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर उनके षण गोस्वामियों ने रखी थी। इन सभी मंदिरों में स्वयं प्रकट ठाकुर विग्रह विराजित हैं। मान्यताओं में दामोदर मंदिर की चार परिक्रमा को गिरिराज गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा के समकक्ष माना गया है। इसके अलावा वृंदावन में उत्तर व दक्षिण के समन्वय का प्रतीक उत्तर भारत का सबसे विशाल व भव्य रंग लक्ष्मी मंदिर, जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह द्वारा बनवाया गया राधा माधव मंदिर (जयपुर वाला मंदिर) राधा वल्लभ मंदिर, कृष्ण चन्द्रमा लाला बाबू मंदिर, कात्यायनी पीठ मंदिर, इमलीतला मंदिर, तराश मंदिर, श्रृंगार वट मंदिर, मीराबाई मंदिर, कृष्ण बलराम मंदिर (अंग्रेजों वाला मंदिर) आदि प्रमुख हैं। यहां के वंशीवट स्थित गोपीश्वर महादेव मंदिर का संबंध कृष्ण द्वारा सोलह हजार एक सौ आठ गोपियों के साथ किए गए महारास से है। इस मंदिर में प्रात:काल उसी शिवलिंग को गोपी के रूप में सजा कर पूजा जाता है। श्रावण में यहां भक्त-श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। सफेद संगमरमर से बना वृंदावन का शाहजी मंदिर, टेढ़े खंभे वाला मंदिर) कला की दृष्टि से उत्तर भारत का सर्वश्रेष्ठ मंदिर है। इस मंदिर के बासंती कमरे में दस-दस फुट लंबे झाड़-फानूस, मुगल कालीन सौंदर्य सामग्री, कलात्मक वस्तुएं और भित्ति चित्र आदि मौजूद हैं। यह कमरा आम दर्शकों के लिए श्रावण की त्रयोदशी व चतुर्दशी को खुलता है। इनके अलावा यहां के मदन मोहन मंदिर, पुराना गोविंद देव मंदिर, युगल किशोर मंदिर और पुराना राधा वल्लभ मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं। कृपालु महाराज द्वारा बनवाया गया प्रेम मंदिर अद्भुत व विलक्षण है। यह वृंदावन के छटीकरा रोड पर 54 एकड़ क्षेत्रफल में स्थापित है। श्वेत इटालियन करारे मार्बल पत्थर से बना यह अभूतपूर्व व ऐतिहासिक मंदिर लगभग 11 वर्षो में बन कर तैयार हुआ है। इसके अलावा वृंदावन में राधा-कृष्ण का नित्य रास स्थल- सेवाकुंज, उद्धव गोपी संवाद स्थल- ज्ञान गुदडी, टटिया स्थान- जहां आज भी वृंदावन का प्राचीन स्वरूप कायम है, यमुना का केसी घाट आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। यमुना पार जहांगीरपुर ग्राम स्थित बेलवन में लक्ष्मी तपस्थली है। यहां लक्ष्मी का भव्य मंदिर है। पौष माह में यहां प्रत्येक गुरुवार को मेला जुड़ता है। गिरिराज-गोवर्धन मथुरा से 21 किमी दूर पश्चिम में मथुरा-बरसाना मार्ग पर स्थित है- गोवर्धन। यहीं पर गोवर्धन पर्वत मौजूद है। उत्तर से दक्षिण की ओर स्थित इस पर्वत की लंबाई 11 किमी और ऊंचाई 30 मीटर है। इस पर्वत की प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में लोग परिक्रमा करते हैं। गोवर्धन में गोवर्धन नाथ का मुखारविंद, मानसी गंगा, हरिदेव मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, दानघाटी मंदिर, गौरांग मंदिर, सनातन गोस्वामी की भजन कुटीर, ब्रšा कुंड, मनसा देवी मंदिर, चकलेश्वर आदि दर्शनीय स्थल हैं। गोवर्धन के निकट चंद्रसरोवर, महाकवि सूरदास की साधना व निर्वाण स्थली परासौली, आन्यौर, गोविंद कुंड, राधा कुंड, पूंछरी का लौण, जतीपुरा, उद्धव कुंड, कुसुम सरोवर, नारद कुंड, ग्वाल पोखरा आदि कई प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। गोकुल-महावन मथुरा से 16 किमी दूर यमुना पार स्थित गोकुल में कृष्ण की शैशवावस्था व्यतीत हुई थी। गोकुल व महावन पर्यायवाची शब्द हैं। ब्रज में कृष्ण जन्माष्टमी पर होने वाले नंदोत्सव का मुख्य आयोजन गोकुल स्थित गोकुलनाथ मंदिर में ही होता है। यहां सवेरे कन्हैया की झांकी शोभा-यात्रा के रूप में निकाली जाती है। साथ ही कृष्ण के पालने के भी दर्शन होते है। इसके अलावा हल्दी मिला दही दधिकांदा के रूप में भक्त- श्रद्धालुओं पर फेंका जाता है। गोकुल में नंद महल, नंदराय मंदिर, कोलेघाट, पूतना उद्धार स्थली, ठकुरानी घाट, रसखान समाधि, चौरासी खंभा, ब्रšांड घाट आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। गोकुल वल्लभ सम्प्रदाय का भी प्रमुख केंद्र है। सादाबाद मार्ग पर मथुरा से लगभग 12 किमी दूर कृष्ण की आच्चदिनी शक्ति राधारानी की जन्म-भूमि रावल है। मान्यताओं के अनुसार कालांतर में वह कंस के अत्याचारों से त्रस्त होकर अपने माता-पिता के साथ बरसाना आकर रहने लगीं। यहां राधारानी का प्राचीन मंदिर भी है। राधा का बरसाना राधा रानी की बाल लीला स्थली बरसाना ब्रजभूमि का हृदय है। यह दिल्ली-आगरा राजमार्ग पर स्थित कोसीकलां से 7 किमी और मथुरा से वाया गोवर्धन 47 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां राधा रानी का विशाल मंदिर है, जिसे लाडि़ली महल के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में विराजित राधा रानी की प्रतिमा को ब्रजाचार्य श्रील नारायण भट्ट ने बरसाना स्थित ब्रšामेश्वर गिरि नामक पर्वत में से संवत् 1626 की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकाला था। इस मंदिर में दर्शन के लिए 250 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। यहां राधाष्टमी के अवसर पर भाद्र पद शुक्ल एकादशी से चार दिवसीय मेला जुड़ता है। इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व ओरछा नरेश ने कराया था। इस मंदिर के निकट ही जयपुर वाला मंदिर है। बरसाना के चारों ओर अनेक प्राचीन व पौराणिक स्थल हैं। यहां स्थित जिन चार पहाड़ों पर राधा रानी का भानुगढ़, दान गढ़, विलासगढ़ व मानगढ़ हैं, वे ब्रšा के चार मुख माने गए हैं। इसी तरह यहां के चारों ओर सुनहरा की जो पहाडि़या हैं उनके आगे पर्वत शिखर राधा रानी की अष्टसखी रंग देवी, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चंपकलता, चित्रा, तुंग विद्या व इंदुलेखा के निवास स्थान हैं। यहां स्थित मोर कुटी, गहवखन व सांकरी खोर आदि भी अत्यंत प्रसिद्ध है। सांकरी खोर दो पहाडि़यों के बीच एक संकरा मार्ग है। कहा जाता है कि बरसाने की गोपियां जब इसमें से गुजर कर दूध-दही बेचने जाती थीं तो कृष्ण व उनके ग्वाला-बाल सखा छिपकर उनकी मटकी फोड़ देते थे और दूध-दही लूट लेते थे। नंदगांव बरसाना से 7 किमी दूर स्थित है- नंदगांव। यह ब्रज के चार प्रमुख धामों में से एक है। नंदगांव में नंदीश्वर पर्वत पर यहां का सबसे अधिक प्रसिद्ध नंदराय मंदिर है। इसे नंदालय अथवा नंद महल के नाम से भी जाना जाता है। इसमें कृष्ण, बलदेव, नंद व यशोदा की मूर्तियां हैं। वर्तमान मंदिर लगभग 150 वर्ष प्राचीन है। यहां सनातन गोस्वामी की भजन स्थली, कदंबखंडी, तड़ाग तीर्थ, नंदीश्वर महादेव, धोयनि कुंड, कदंब टेर, रूप गोस्वामी की भजन स्थली, ललिता कुंड, विशाखा कुंड, यशोदा कुंड, हाऊ-विलाऊ, मधुसूदन कुंड, कारहरो वन, वृंदादेवी, कदंब वन, मुक्ता कुंड, उद्धव क्यारी, मोहिनी वन, आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। बलराम की नगरी बलदेव कृष्ण जन्मभूमि मथुरा से 22 किमी दूर उनके अग्रज बलराम की नगरी बलदेव है। बलदेव, दाऊजी के नाम से भी प्रसिद्ध है। कृष्ण जब ब्रज छोड़ कर द्वारिका चले गए थे तब बलराम ही ब्रज के राजा माने गए थे। बलदेव में ठाकुर दाऊ दयाल का विशाल मंदिर है। इस मंदिर में बलराम का विशाल श्याम वर्ण विग्रह स्थापित है। इस मंदिर में बलराम की प्रतिमा के समक्ष उनकी पत्नी रेवती की भी प्रतिमा स्थापित है। 16वीं सदी में जब कुछ मुगल आक्रांताओं द्वारा विभिन्न मंदिरों को तोड़ा जा रहा था तब भी यह मंदिर सुरक्षित बना रहा। इस मंदिर में माखन-मिश्री का विशेष भोग लगाया जाता है। जिसे दाऊजी का हंडा कहा जाता है। ब्रज में 84 कोस की यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। ब्रज चौरासी कोस में 1300 से भी अधिक गांव, 1000 सरोवर, 48 वन, 24 कदंब खंडिया, अनेक पर्वत व यमुना घाट व कई अन्य महत्वपूर्ण स्थल है। ==External links== *[http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0 Brajdiscovery.org {{Languageicon|hi}}] *[http://www.brajwasi.in Brajwasi.in For Braj Dham] *[http://www.brajdhamseva.org The Braj Dham Seva (service)- The organisation that has really been inspiring and mobilizing to restore Braj] *[http://www.up-tourism.com/destination/braj/braj_bhoomi.htm http://www.up-tourism.com/destination/braj/braj_bhoomi.htm] *[http://www.tourism-of-india.com/brajbhoomi.html http://www.tourism-of-india.com/brajbhoomi.html] *[http://www.radhavallabh.com/BrajChaurasiKosYatra.htm Braj Chaurasi Kos Yatra explained in Detail] *[http://www.brajfoundation.org The Braj Foundation] {{coord missing|Uttar Pradesh}} {{Historical regions of North India}} [[Category:Tourism in Uttar Pradesh]] [[Category:Krishna]] [[Category:Mahabharata]] [[Category:Regions of India]] [[Category:Regions of Uttar Pradesh]] [[ru:Брадж]]'
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